हिंदू धर्म में हर साल 12 पूर्णिमा होती हैं जो हर महीनें आती हैं। कार्तिक महीने में आने वाली पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा, त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान की पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा को सिख सम्प्रदाय में प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है। क्योंकि इस दिन उनके संस्थापक गुरू नानक देव का जन्म हुआ था। इस दिन को गुरु पर्व भी कहा जाता है। ऐसे में आइए जानते है उनसे जुड़ी ये खास बातें –
श्री गुरु नानक देव जी का जन्म राय भोए की तलवंडी (अब पाकिस्तान में ननकाना साहिब) में 1469 ई. में मेहता कल्याण दास जी के घर माता तृप्ता जी की कोख से हुआ। गुरु जी बचपन से ही संत महापुरुषों की तरह ही अपनी जिदंगी गुजारते थे। 9 वर्ष की उम्र में जब गुरु जी को जनेऊ पहनने को कहा गया तो आपने यह पवित्र जनेऊ पहनने से यह कहकर मना कर दिया कि उन्हें तो ऐसा जनेऊ पहनाया जाए, जो न तो कभी टूट सके साथ न ही गंदा हो सके और न ही अाग उसे जला सके। यह सुनकर सभी दंग रह गए और गुरु जी से ही पूछा ऐसा जनेऊ कहां से मिलेगा, तो गुरु जी ने उत्तर दिया।
इसके बाद जब गुरु जी थोड़े और बड़े हुए तो उन्हें कारोबार सिखाने के लिए 20 रुपए देकर कुछ सामान खरीदने के लिए भेजा गया, ताकि उस सामान को वापस आकर अधिक मूल्य पर बेचकर मुनाफा कमाया जा सके परंतु गुरु जी ने गांव चूहड़काना में कई दिनों से भूखे-प्यासे बैठे संत महापुरुषों को इन 20 रुपए का भोजन खिला दिया साथ ही यह कहा कि यह ‘सच्चा सौदा’ है। जब गुरु जी घर पहुंचे तो उनके पिता जी उनसे बहुत नाराज हुए लेकिन गुरु जी की बहन बीबी नानकी जी ने अपने पिता जी को समझाया कि गुरु जी कोई साधारण व्यक्ति नहीं है, बल्कि भगवान ने उन्हें किसी विशेष काम के लिए यह भेजा है।
गुरु नानक देव जी की बड़ी बहन बीबी नानकी जी के ससुराल सुल्तानपुर लोधी में थे। बहन अपने भाई को अपने पास सुल्तानपुर ही ले आई, जहां गुरु जी को मोदीखाने में नौकरी मिल गई, लेकिन इसके बावजूद भी गुरु जी का ध्यान यहां भी भक्ति में ही लगा रहा। जो भी जरूरतमंद उनके पास आता, आप उसे भोजन या राशन दे देते थे।
गुरु नानक देव जी इस दुनिया पर भूले-भटके लोगों को सत्य का मार्ग दिखलाने आए थे। अपने उद्देश्य को वे पूरे देश-विदेश का भ्रमण करके ही पूरा कर सकते थे। इसी उम्मीद को लेकर आप नित्य की तरह सुल्तानपुर के निकट से बहती बेईं नदी में स्नान करने के लिए गए और तीन दिन तक बाहर न आए। लोगों ने सोचा कि गुरु नानक देव जी नदी में डूब गए हैं, लेकिन इसके बाद तीसरे दिन आप जी जब नदी से बाहर निकले तो आपने कहा कि न कोई हिन्दू न मुसलमान। इस पर विवाद खड़ा हो गया, परंतु गुरु जी ने सभी को समझाया कि मनुष्य को इंसान बनना है, तो ऐसे में इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है।
अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए गुरु जी ने चारों दिशाओं में चार लंबी यात्राएं कीं, जिन्हें चार उदासियां कहा जाता है। इन चार यात्राओं में गुरु जी ने देश-विदेश का भी भ्रमण तक किया तथा लोगों को सत्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।
भाई गुरदास जी के अनुसार, गुरु नानक देव जी अपनी यात्राएं (उदासियां)पूरी करने के बाद करतारपुर साहिब आ गए। उन्होंने उदासियों का भेस उतारकर संसारी वस्त्र धारण कर लिए। सत्संग प्रतिदिन होने लगा। भाई गुरदास जी के शब्दों में:-