शहर में बंदर के हमले में जान गंवाने वाले सैक्टर-22 के 17 वर्षीय युवक के परिजनों के लिए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने 13 लाख रुपए का मुआवजा मंजूर किया है। इसमें से 4 लाख रुपए पहले ही प्रशासन 2-2 लाख रुपए अंतरिम मुआवजे के रूप में अदा कर चुका है।
चंडीगढ़ नगर निगम व अन्य को पार्टी बनाते हुए मृतक युवक की मां भूपिंद्र कौर की याचिका में यह आदेश जारी किए गए हैं। हाईकोर्ट ने साफ किया है निगम यह 9 लाख रुपए की राशि अदा करेगी। सैक्टर-22 में 31 मार्च, 2015 में संबंधित घटना घटी थी।
घटना में युवक अमरजीत सिंह पर बिल्डिंग के टॉप फ्लोर से बंदर ने स्लैब गिरा दी थी। अमरजीत सैक्टर-22 में कपड़े की दुकान में काम करता था और तब वह दुकान के बाहर खड़ा था। गंभीर हालत में युवक को पी.जी.आई. भर्ती करवाया गया था जहां 4 अप्रैल को उसकी इलाज के दौरान मौत हो गई थी।
इस घटना ने बंदरों के शहर में आतंक की घटना ने बड़ा रूप ले लिया था। मृतक युवक के परिजनों ने वर्ष 2015 में चंडीगढ़ म्यूनिसिपल कार्पाेरेशन व अन्यों को पार्टी बनाते हुए यह याचिका दायर की थी, जिसमें प्रतिवादी पक्ष पर आरोप लगाया था कि वह आवारा जानवरों की समस्या को नजरअंदाज कर रहे हैं।
ऐसे में शहरवासियों की सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करते हुए याची पक्ष ने अपने बेटे की मौत पर मुआवजे की मांग की थी।
क्या चंडीगढ़ के विभागों में है तालमेल की कमी
हाईकोर्ट ने केस में पाया था कि प्रथम दृष्ट्ता में बंदर के हमले से युवक की जान जाने की बात सामने आती है। हाईकोर्ट ने सवाल उठाया था कि क्या चंडीगढ़ के विभिन्न विभागों में तालमेल की कमी है जिसके चलते बंदरों की समस्या से निजात के लिए विस्तृत योजना शुरू करने में अनावश्यक देरी हो रही है। हाईकोर्ट ने कहा था कि यह प्रशासन और नगर निगम की ड्यूटी है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाए।
फॉरैस्ट डिपार्टमैंट का यह था जवाब
मामले में इससे पूर्व यू.टी. के चीफ कंजर्वेटर ऑफ फोरैस्ट एंड चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन संतोष कुमार ने शहर में बंदरों के आतंक पर जवाब में कहा था कि लोग इन्हें धार्मिक विश्वास के चलते खाने को देते हैं। यदि फोरैस्ट डिपार्टमैंट बंदरों को शहर से बाहर भी भेजने का अभियान चलाए तो इनके वापस आने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।