मिलिए एक ऐसे शख्स से, जो विंटेज कारों का इतना दीवाना है कि बच्चों की तरह इनकी देखभाल करता है। इनके पास अंग्रेजों के जमाने की सात गाड़ियां हैं। चंडीगढ़ में कई ऐसे लोग है, जिन्होंने विटेंज गाड़ियों को अपनी जान से ज्यादा संभाल कर रखा है। वह इन्हें अपने बच्चों की तरह पालते हैं। इन्हीं में से एक हैं बीएस मनकू, जो विटेंज गाड़ियों के शौकीन हैं। इनके पास एक से बढ़ कर एक विटेंज गाड़ियां हैं। इनकी विटेंज गाड़ियां जब सड़कों पर निकलती है तो लोगों की नजर उन पर टिक जाती है।
इनके पास 1948 मॉडल की ऑस्टिन ऑफ इंग्लैंड, 1938 मॉडल की फ्रेंच सिटरोन, र्शेवलेट 1948 मॉडल, र्शेवलेट 1960 मॉडल, मर्सडीज बेंज 1962, वोक्स वेगन 1971 मॉडल, फिएट 1960 मॉडल की गाड़ियां हैं। इन गाड़ियों को लेकर बीएस मनकू और उनका परिवार इतना क्रेजी रहता है कि वह रोजाना इसकी देखभाल करते हैं। गाड़ियां गैराज में रहती हैं, लेकिन हर हफ्ते इन्हें सड़क पर दौड़ाया जाता है। कई किलोमीटर तक चलाकर इन्हें परखा जाता है।
विटेंज गाड़ियों के देखते हुए बड़ा हुआ
बीएस मनकू ने बताया कि उनके पिता हरि सिंह दिल्ली में बिजनेसमैन थे। उस समय ये गाड़ियां खरीद कर लाई गई थीं। पिता जी के पास ऐसी पांच गाड़ियां थीं। मेरा बचपन इन्हीं गाड़ियों के बीच गुजरा। बड़े होकर मैने भी गाड़ियां खरीदीं और आज मेरे पास सात विटेंज गाड़ियां हैं।
मुझे भी इन गाड़ियों से मोहब्बत हो गई थी
रैली में 1948 मॉडल की ऑस्टिन ऑफ इंग्लैंड के साथ पहुंचे मनकू ने बताया कि यह गाड़ी मैंने 50 साल पहले 75 हजार रुपये में खरीदी थी, लेकिन इन गाड़ियों को संजो कर रखना किसी चैलेंज से कम नही होता। मुझे और मेरे परिवार को इन अब गाड़ियों से मोहब्बत हो गई है। जब मनकू से पूछा गया कि गाड़ियों को आपने किससे, कब और कितने में खरीदा तो उन्होंने कहा कि यह बताने की बात नहीं होती।
विदेशों से मंगवाता हूं पार्ट्स
बीएस मनकू ने कहा कि विंटेज गाड़ियों की मेनटेनेंस में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। क्योंकि विंटेज कारें अब मिलती नहीं हैं तो उनके पार्ट्स खराब हो जाने पर काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है। पार्ट्स जर्मनी, इंग्लैंड, फ्रांस से मंगवाने पड़ते हैं।