जहां एक ओर मौसम विभाग ने भविष्यवाणी की है कि अगले 8-10 दिनों में उत्तर भारत में मानसून सक्रिय हो जाएगा, वहीं दूसरी ओर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बाढ़ की आशंका को लेकर जिन राज्यों के बारे में अनुमान तैयार किया है।
उस सूची (फ्लड वलनरेबिलिटी इंडैक्स) के पहले 10 राज्यों में पंजाब का स्थान पहला है। हरियाणा छठे नंबर पर है। बाढ़ की आशंका को देखते हुए राज्यों को 10 में से नंबर दिए गए हैं। इनमें पंजाब को 6.67 अंक और हरियाणा को 4.12 अंक मिले हैं। पश्चिम बंगाल (6.43) दूसरे, बिहार (6) तीसरे, उत्तर प्रदेश (4.76) चौथे और आंध्र प्रदेश (4.49) 5वें स्थान पर है। लिस्ट में शामिल अन्य राज्य हैं-केरल, असम, गुजरात और ओडीशा।
मंत्रालय द्वारा जो अनुमान तैयार किया गया वह 1950 के बाद देश में विभिन्न स्थानों पर आईं बाढ़ों के असली आंकड़ों पर आधारित है। इस अनुमान में चक्रवाती तूफान व गर्मी से होने वाली मौतों के खतरे को भी शामिल किया गया है। चक्रवाती तूफान की श्रेणी में समुद्र तटीय राज्यों को शामिल किया गया है जबकि गर्मी से मौत के खतरों की श्रेणी में पंजाब सहित ओडीशा, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल शामिल हैं।उक्त इंडैक्स को तैयार करने के लिए जो मापदंड लिए गए उनमें 1950 से 2016 के बीच बाढ़ प्रभावित क्षेत्र (वास्तविक), बाढ़ की आशंका वाले इलाके और वह मैट्रोपोलिटन व बड़े शहर जो बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में आते हैं, शामिल किए गए। हालांकि पिछले दशकों में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल में बाढ़ आने की घटनाएं सर्वाधिक होती रही हैं, लेकिन हाल के वर्षों में असम तथा बिहार में ये घटनाएं बढ़ी हैं।
जहां तक हरियाणा का सवाल है बाढ़ यहां प्राचीनकाल से आती रही है। राज्य के कुछ हिस्से ऐसे हैं जहां बाढ़ की आशंका हर साल बनी ही रहती है। पिछले कुछ दशकों में वर्ष 1977, 78, 80, 83, 88, 93, 95 और 1996 में आई बाढ़ें विशेष रूप से उल्लेखनीय रही हैं। इनके कारण फसलों को तो नुक्सान हुआ ही, कई जानें भी जा चुकी हैं जिनमें मनुष्य व पशु दोनों ही शामिल हैं। नैशनल डिजास्टर मैनेजमैंट अथॉरिटी (एन.डी.एम.ए.) के अनुसार हरियाणा में बाढ़ के जो कारण हैं उनमें प्रमुख ये हैं कि दिल्ली-रोहतक-हिसार-सिरसा एक्सिस (धुरी) के आसपास का इलाका सॉसर (चाय की प्लेट) के आकार का है, यानी आसपास का इलाका ऊंचा है जबकि बीच का हिस्सा नीचा है। साथ ही ड्रेनेज का सिस्टम भी अच्छा नहीं है, जिसके कारण यदि यहां एक बार पानी भर जाए तो निकलना मुश्किल हो जाता है। 1995 की बाढ़ में यही हालात बने थे जिसके कारण कई दिनों तक रोहतक व आसपास के जिलों में जल भराव की स्थिति रही।