चंडीगढ़.इस बार की धनतेरस सीए पुनीत के लिए एक काली रात थी। लंबे समय से ब्लड प्रेशर के मरीज उनके पिता अनिल गुप्ता को उस दिन सुबह ही दवा देकर सेक्टर-12ए पंचकूला में डायग्नोस्टिक सेंटर पर चेकअप करवा कर गए थे। शाम को पुनीत घर लौटे तो पिता को पसीना आया हुआ था। उनका कहना था कि शायद गैस की प्रॉब्लम हो गई है। फैमिली डॉक्टर के पास गए तो बीपी 90-60 निकला। डॉक्टर ने तुरंत पीजीआई जाने को कहा। एम्बुलेंस का नंबर डॉक्टर ने ही दिया। नंबर तुरंत कनेक्ट भी हो गया लेकिन धनतेरस के कारण एम्बुलेंस सेक्टर-11 पंचकूला में फंसी रही। बार-बार ड्राइवर से बात होती और वह कहता रहा कि रास्ते में ही है। 5 मिनट का रास्ता 15 मिनट में पूरा हुआ। पीजीआई लेकर जाना था। भीड़ की वजह से एम्बुलेंस ने सीधे के बजाय पीछे का रास्ता पकड़ा।
मध्य मार्ग पर जाम बहुत था इसलिए उसने अंदर के रास्तों से निकाला। ऐसे में रास्ता भी लंबा हो गया। पीजीआई पहुंचने से पांच मिनट पहले ही पता लग गया था कि पिता की सांसें छूट चुकी हैं लेकिन उम्मीद का दामन नहीं छूटा था। इकलौते बेटे ने पिता को पंप देना जारी रखा। लेकिन 7.30 बजे जब पीजीआई पहुंचे तो डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। डॉक्टरों ने उनकी उम्मीद को देख कर 15 मिनट तक कोशिश की लेकिन अनिल गुप्ता दुनिया को अलविदा कह चुके थे। वक्त पर उनको सही इलाज मिल जाता तो उनकी जान न जाती।
भास्कर सरोकार… ताकि लाइट प्वाइंट्स पर दम न तोड़े जिंदगी
एम्बुलेंस के लिए एक डेडिकेटेड लेन क्यों नहीं? उसे रास्ता देने का वैसा ही इंतजाम क्यों नहीं जैसा वीवीआईपीज के लिए होता है…
इमरजेंसी में वक्त पर हॉस्पिटल न पहुंचने का यह केस अकेले अनिल गुप्ता का नहीं है। शहर की सड़कों पर ट्रैफिक लाइट्स या जाम में फंसी हूटर बजाती एम्बुलेंस को आप अक्सर देख-सुन सकते हैं। इन्हें रास्ता कम ही दिया जाता है। नतीजा- मरीज की हालत अस्पताल पहुंचने तक बिगड़ जाती है। ऐसी घटनाएं शहर में आम हैं। आए दिन ऐसे ही `अनरिकॉर्डेड’ हादसों के कारण ही दैनिक भास्कर ने किया रिएलिटी चेक।
क्या किया...
भास्कर के रिपोर्टर-फोटोग्राफर्स की टीम ने एक हफ्ते तक सड़कों पर उतरकर देखा कि एम्बुलेंस जब चंडीगढ़ में एंटर करती है ताे कहां-कहां पर उसका समय खराब होता है।
हमने क्या नोटिस किया...
– 15 ट्रैफिक लाइट प्वाइंट्स पड़ते हैं जीरकपुर से पीजीआई के रास्ते।
– 06 लाइट प्वाइंट्स पड़ते हैं जीरकपुर से जीएमसीएच-32 के रास्ते।
– 01 से 03 मिनट तक रुकना पड़ता है हर लाइट प्वाइंट पर।
– 04 घंटे में पीजीआई में लगभग 60 एम्बुलेंस भास्कर ने रिकॉर्ड की हैं।
: पीजीआई और जीएमसीएच-32 में रोजाना हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पश्चिमी यूपी और पंजाब से मरीज आते हैं। पंजाब की ओर से आने वाली एम्बुलेंस को कुराली के रास्ते पीजीआई तक पहुंचने का जरिया मिल जाता है, लेकिन हिमाचल व हरियाणा की ओर से पीजीआई पहुंचना एक मुश्किल काम है।
: एम्बुलेंस की आड़ में दूसरे वाहन ट्रैफिक से बचने के लिए उसके पीछे लगते हैं।
इन शहरों में है डेडिकेटेड एम्बुलेंस लेन
इंदौर, अमृतसर और भोपाल जैसे शहरों में डेडिकेटेड एम्बुलेंस लेन है, लेकिन देश की सबसे पहली `प्लांड सिटी’ में ये सुविधा नहीं है।
ये हो सकते हैं एम्बुलेंस को निकालने के तरीके
– एम्बुलेंस के लिए रेड लाइट से करीब 100 मीटर पहले राइट साइड पर एम्बुलेंस, फायर ब्रिगेड या इमरजेंसी वाहनों के लिए जगह रखी जाए। ये लोकेशन के हिसाब से 50 या 150 मीटर तक भी हो सकती है।
– जहां से इमरजेंसी लेन शुरू हो, वहां इसका बोर्ड लगा होना चाहिए, स्ट्रिप से इसकी सही मार्किंग होनी चाहिए। इस पर रिफ्लेक्टर्स लगाए जा सकते हैं।
– लाइट पर ट्रैफिक पुलिस रहती ही है जो इस लेन में दाखिल होने वाले अन्य वाहनों के चालान काटे।
– एनएसएस, एनजीओ के जरिए अवेयरनेस ड्राइव शुरू की जा सकती है।
हरअमृत सिंह संधू,पेक यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी में एसोसिएट प्रोफेसर और एसएससीई इंडिया सेक्टर के सेक्रेटरी