कभी केंद्र का चहेता रहा चंडीगढ़ विकास की पटरी से उतर रहा है। आबादी के बोझ तले सिटी ब्यूटीफुल में विकास प्रोजेक्ट लटके पड़े हैं। अव्वल तो कोई प्रोजेक्ट फाइलों से निकलने में ही सालों बीत जाते हैं यदि कोई प्रोजेक्ट निकला तो वह विभागीय खींचतान में अटक जाता है। इसका खामियाजा रेजिडेंट्स को भुगतना पड़ रहा है। अमर उजाला इस सेव चंडीगढ़ सीरीज के तहत लगातार इस मुद्दे को उठा रहा है, ताकि शहर की सुंदरता बरकरार रह सके।
केंद्र सरकार को यदि कोई महत्वाकांक्षी योजना शुरू करनी हो तो उसे पहले चंडीगढ़ में लागू करके देखा जाता है। केरोसिन फ्री सिटी हो या डायरेक्ट बेनिफिट स्कीम या फिर डिजिटल इंडिया हर योजना पहले चंडीगढ़ में लागू हुई, इसके बाद देश के तमाम शहरों में। आज हालात ऐसे नहीं हैं। प्रशासनिक व्यवस्था चरमरा उठी है। यही कारण है कि पिछले दो से तीन वर्षोें में चंडीगढ़ प्रशासन द्वारा शहर के लोगों की सहूलियत और परेशानी को दूर करने के लिए शुरू की गई योजनाएं अब तक फाइलों में ही सिमटी पड़ी हैं। शहर के कई बड़े प्रोजेक्ट घोषणा के दो से तीन साल बीत जाने के बावजूद अब तक पूरे नहीं हो पाए। अफसर बजट और केंद्र सरकारी से मंजूरी न मिलने का हवाला देते आए हैं।
बीते दो से तीन सालों में प्रशासन ने जिन प्रोजेक्टों की घोषणा की, आज भी वे प्रोजेक्ट शुरू नहीं हो पाए हैं। कई प्रोजेक्ट ऐसे हैं, जिन्हें पूरा किए जाने का समय भी पूरा हो चुका है, लेकिन अब तक उन प्रोजेक्ट के निर्माण कार्य को लेकर शिलान्यास का एक पत्थर तक न रखा गया। शहर के कुछ चुनिंदा प्रोजेक्ट जैसे की ट्रिब्यून चौक पर बनने वाले क्लोवरलीफ फ्लाईओवर के निर्माण को डेढ़ साल बीत चुका है, लेकिन अब तक निर्माण कार्य शुरू नहीं हुआ है। जबकि दिसंबर 2017 तक इस प्रोजेक्ट को पूरा किया जाना था। सांसद किरण खेर ने जून 2016 में इसकी घोषणा की थी। लेकिन चार से पांच बार टेंडर फेल होने और समय पर डीपीआर न बनने के चलते अब तक यह प्रोजेक्ट शुरू नहीं हो सका।
इसी तरह स्वास्थ्य क्षेत्र को मजबूत करने की दिशा में सारंगपुर में पीजीआई के एक्सपेंशन का प्लान भी ठंडे बस्ते में है। यही नहीं 11 साल गुजर जाने के बावजूद यूटी इम्पलाज हाउसिंग स्कीम-2008 भी अधर में है, जिसमें करीब 4 हजार कर्मचारियों का भविष्य दांव पर लगा है। प्रशासन की लापरवाही के कारण आज यूटी के ये 4 हजार कर्मचारी एक छत के लिए दर-दर भटक रहे हैं, लेकिन केेंद्र सरकार से लेकर प्रशासन तक इन लोगों की कोई सुनवाई नहीं हो रही। फिर चाहे बात चंडीगढ़ के मनीमाजरा में बनने वाले रेलवे अंडर ब्रिज की हो। सांसद खेर ने नवंबर 2016 में मनीमाजरा रेलवे क्रासिंग पर आरयूबी के निर्माण की घोषणा की थी। दिसंबर 2017 तक ये प्रोजेक्ट पूरा होना था। लेकिन रेलवे से समय पर मंजूरी न मिलने, बजट के अभाव, दो से तीन बार टेंडर फेल होने और रेलवे विभाग की ओर से समय पर सहायता न मिल पाने के कारण अब तक आरयूबी का निर्माण कार्य शुरू नहीं हुआ है।
2019 से पहले सारे प्रोजेक्ट पूरे होंगे
शहर के वह सभी प्रोजेक्ट जो कुछ वर्षों से फाइलों में बंद पड़े थे, मैंने उन सभी को दोबारा शुरू करवाया। यहां तक की इन प्रोजेक्टों की मंजूरी के लिए मैं केंद्र सरकार से लेकर संसद तक गई। कई बार बड़े प्रोजेक्टों को शुरू करने में थोड़ी देर हो जाती है लेकिन जल्दबाजी में कभी कोई गलत काम नहीं होना चाहिए। मेरी हमेशा यही कोशिश रहती है। मैंने शहर के लोगों से बतौर सांसद जो भी वादे किए हैं, उन्हें पूरा करूंगी। कई प्रोजेक्ट हैं जोकि पूरे हो रहे हैं और कई पूरे हो चुके हैं। चाहे फिर वह जीएमसीएच-32 के मेडिकल कालेज की सीटें बढ़ाने का मामला हो या फिर शहर को 24 घंटे पानी मुहैया कराने के लिए कजौली से वाटर पाइपलाइन शुरू करना हो। आज शहर के हर गांव और कालोनी में स्कूल का निर्माण किया जा रहा है ताकि बच्चों को अच्छी शिक्षा मुहैया कराई जा सके। बतौर सांसद पिछले तीन सालों में मैंने कई सरकारी स्कूल शुरू कराए हैं। मेरी कोशिश रहेगी कि 2019 से पहले सभी प्रोजेक्टों को पूरा कर लिया जाए।