सुखना लेक पर लगे पीपल के पेड़ का इतिहास बहुत पुराना है और इसके पीछे एक बहुत बड़ी कहानी छिपी हुई है। देखिए
नेकचंद की नेकी की एक और मिसाल देखिए। बरसों पुराने पीपल के पेड़ को प्रशासन के कारिंदे कुल्हाड़ी लेकर काटने पहुंच गए। पता चलते ही नेकचंद मौके पर पहुंचे और माता की बंधी हुई चुनरी दिखाते हुए बोले-इस पेड़ को काटना मत। गवर्नर साहब की पत्नी यहां पूजा करने आती हैं। पेड़ काटोगे तो उनकी नाराजगी झेलनी होगी। अंजाम पता नहीं क्या हो।
नेकचंद का इतना कहना था कि कर्मचारियों के कुल्हाड़ी लिए हाथ थम गए। और समय का खेल देखिए, आज वही पेड़ सिटी ब्यूटीफुल की विरासत का हिस्सा बन गया है। सुखना लेक पर हजारों लोगों को अपनी ठंडी छाया दे रहा है। यह वाकया बताते हुए रॉक गार्डन के जनक नेकचंद के बेटे अनुज सैनी अतीत में खो जाते हैं।
अमर उजाला से बात करते उन्होंने बताया कि उनके पिता को प्रकृति से बहुत प्यार था। उन्होंने झूठी कहानी पेड़ को बचाने के लिए गढ़ी थी। बकौल अनुज-बचपन में नेकचंद ने खुद उन्हें यह किस्सा सुनाया था। याद दिला दें कि चंडीगढ़ प्रशासक ने 21 दिसंबर को सिटी के जिन 31 पेड़ों को हेरिटेज का दर्जा दिया है, उनमें सुखना लेक का वह पीपल का पेड़ भी शामिल है, जिसे नेकचंद ने बचाया था।
250 मीटर दूरी पर है सुखना लेक का यह खूबसूरत पेड़
अनुज बताते हैं कि यह पेड़ 1958 में सुखना लेक के निर्माण से पहले का है। इसे काटने के लिए जब प्रशासन ने कार्रवाई करनी चाही, तो नेकचंद जी ने इसकी रोज निगरानी करनी शुरू कर दी थी। सुखना लेक के अस्तित्व में आने से पहले जन्मे इस पेड़ की छाया उनके पिता को बेहद पसंद थी। काम करते करते जब वे थककर चूर हो जाते थे तो इसके नीचे ही आराम करते थे।
सड़क बनाने के चक्कर में प्रशासन काटना चाहता था इस पेड़ को :अनुज सैनी
अनुज ने बताया कि उनके पिता जब रॉक गार्डन का निर्माण कर रहे थे, तब भी यह पेड़ था। उनके पिता के सामने ही सुखना व रॉक गार्डन की सड़कें बनीं हैं। इस दौरान सुखना लेक की सड़कें बनाने केलिए प्रशासन पेड़ को काटना चाहता था। उनके पिता के विरोध के बाद ही सड़क की दिशा बदली गई।