10 साल की लड़की ने दिया बच्ची को जन्म,
एक 10 साल की बच्ची को उसके मामा ने ही बार-बार अपनी हवस का शिकार बनाया। वह गर्भवती हो गई और फिर… पढ़िए झकझोर देने वाली कहानी। वो मासूम सी थी। आम बच्चों की तरह उसका बचपन भी गुड़ियों-खिलौनों संग बीत रहा था। कंधे पर बस्ता टांगे बच्चों संग स्कूल जाती। लौटकर मोहल्ले में खेलने निकल जाती। दिन ढल जाता तो आकर मां के दामन में दुबक जाती। सब कुछ सामान्य चल रहा था। तभी… एक दिन उसके अपने मामा की वहशी नजरें उसे लग गईं। उसने मासूम बचपन को अपनी हवस की आग में जला दिया। अबोध बच्ची को तो पता तक नहीं था कि उसका अपना मामा उसके साथ कैसा अत्याचार कर रहा है। माता पिता को सपने तक में गुमान नहीं था कि उनकी बेटी कैसी यातना से गुजर रही है। दो जून की रोटी कमाने में व्यस्त गरीब माता पिता उसे आरोपी कुलबहादुर के पास छोड़ देते थे। कुलबहादुर ने न केवल भरोसे का कत्ल किया बल्कि रिश्तों की मर्यादा को भी तार तार कर दिया। माता पिता को जब पता चला तब तक समय हाथ से निकल चुका था। मामला अदालत की चौखट तक पहुंचा लेकिन डॉक्टरों ने रिपोर्ट दी कि बच्ची का अबॉर्शन नहीं हो सकता। गर्भ में हरकत होती बच्ची बेचैन हो जाती। मां से सवाल करती लेकिन मां उसे तरह तरह से बहलाने की कोशिश करती। लेकिन ऐसा ज्यादा दिन तक कैसे चल सकता था। आखिर बच्ची को डॉक्टरों की निगरानी में रहना पड़ा। अस्पताल में भर्ती बच्ची से सब सहानुभूति दिखाते और आरोपी मामा को कोसते। अस्पातल में भी बच्ची तरह तरह केसवाल करती लेकिन जवाब किसी के पास नहीं था। वह घर जाने की जिद करती। कभी कहती-उसे स्कूल जाना है। नहीं जाऊंगी तो टीचर नाम काट देगी। बच्ची के मासूम सवालों को सुनकर उसकी देखभाल में जुटी नर्स की भी आंखें भर आतीं। माता पिता उस मनहूस लम्हे को कोसते जब उन्होंने कुलबहादुर पर भरोसा करके अपनी फूल सी बच्ची को उसके हवाले किया था। अब बच्ची ने बेटी को जन्म दिया है। दुष्कर्मी मामा सलाखों के पीछे है। उसकेगुनाह की सजा अदालत तय करेगी लेकिन समाज के तीखे सवालों से अपनी बच्ची को बचाने की चुनौती पिता के सामने खड़ी है। हालांकि प्रशासन ने एक काउंसलर नियुक्त किया है, जो इन परिस्थितियों से उबरने में मदद करेगा।