जाब की पूर्व कैबिनेट मंत्री लक्ष्मीकांता चावला ने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को चिट्ठी लिखकर शिक्षा विभाग के उस फैसले पर दोबारा विचार करने के लिए कहा है, जिसमें सरकार ने 50 वर्ष की आयु से अधिक पुरुषों को ही लड़कियों के स्कूल में पढ़ाने की इजाजत के फैसले पर कड़ी नराजगी जताते हुए गुरू की मर्यादा का हनन बताया है।
उन्होंने कहा कि पंजाब सरकार का सद्भावना से लिया गया यह फैसला कि लड़कियों के स्कूलों में 50 वर्ष की आयु से अधिक पुरुष अध्यापक ही पढ़ाएंगे वास्तव में अध्यापकों के सम्मान के विरुद्ध फैसला है।
सरकार अपने अध्यापकों पर अविश्वास कर रही है, पर दूसरी ओर बहुत ज्यादा स्कूलों में विशेषकर गांवों में सह शिक्षा है। पहली कक्षा से बारहवीं तक लड़के-लड़कियां इकटठे पढ़ सकते हैं, पर पुरुष अध्यापक लड़कियों के स्कूल में नहीं पढ़ा सकते, यह एक भद्दा मजाक है।
होना तो यह चाहिए कि भर्ती से पहले सभी कर्मचारियों के आचार व्यवहार का पता किया जाए और जो पहले ही शराब पीते और कोई नशा करते हैं उन्हें कभी भी सरकारी सेवा में न लिया जाए।
सरकार यह भूल गई कि अमृतसर के ही कुछ सीनियर सेकेंडरी स्कूलों के विषय में यह मांग की गई थी कि ये स्कूल लड़के और लड़कियों के लिए अलग अलग कर दिए जाएं। वह तो सरकार आज तक पूरा नहीं कर पाई, पर अध्यापकों पर अविश्वास करके यह फैसला लिया जा रहा है।
क्या सरकार यह फैसला भी लेगी कि लड़कों के स्कूल में भी पचास वर्ष से उपर की ही महिला अध्यापक पढ़ाने जाए। आज की जरूरत यह है कि बच्चों को चरित्र निर्माण की शिक्षा दी जाए। देश के महापुरुषों के जीवन चरित्र स्कूलों-कॉलेजों में पढ़ाएं जाएं और बच्चों को नशों से दूर रहने की प्रेरणा दी जाए।
एक सवाल और भी, क्या यह नियम कॉलेजों में भी लागू होगा? लड़कियों के कॉलेजों में पुरुष पढ़ाएंगे या नहीं?