पिछले साढ़े तीन साल से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की हालत सुधारने में जुटी मोदी सरकार इस बार आम बजट में इस बारे में कुछ खास करने की तैयारी है। माना जा रहा है कि सरकारी बैंकों में विलय को लेकर अब दो टूक फैसला किया जाएगा। वित्त मंत्री अरुण जेटली बैंक विलय का पूरा रोडमैप इस बजट में पेश कर सकते हैं। इससे निश्चित तौर पर वित्तीय क्षेत्र में सुधार का एक अहम एजेंडा आगे बढ़ेगा, लेकिन इस कदम से सकार की असली मंशा बेहाल पड़े सरकारी बैंकों में नई जान फूंकना है। सरकारी बैंकों का एकीकरण एक ऐसा एजेंडा है, जिस पर वर्ष 2002 के बाद से तीन केंद्र सरकारें गंभीरता से विचार करने के बावजूद कदम आगे बढ़ाने का माद्दा नहीं दिखा सकीं।
बैंकिंग क्षेत्र से जुड़े सूत्रों का कहना है कि सरकारी बैंकों के विलय को लेकर गठित समिति में पिछले कुछ हफ्तों में व्यापक विचार-विमर्श हुआ है। इसी आधार पर बजट में घोषणा होगी। अक्टूबर 2017 में कैबिनेट के फैसले के अनुरूप सरकार ने वित्त मंत्री अरुण जेटली की अध्यक्षता में बैंक विलय की वैकल्पिक व्यवस्था तलाशने के लिए एक समिति गठित की थी। रेल मंत्री पीयूष गोयल और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण भी इस समिति के सदस्य हैं। तब सरकार की तरफ से कहा गया था कि बैंक विलय का प्रस्ताव बैंकों की तरफ से ही आना चाहिए। उस प्रस्ताव पर यह समिति फैसला करेगी और इसे आरबीआइ व सेबी की तरफ से लागू करने की व्यवस्था होगी। इस समिति के अलावा पूर्व कैग विनोद राय की अध्यक्षता वाले बैंकिंग बोर्ड ऑफ ब्यूरो ने भी विलय पर अपने कुछ सुझाव दिए हैं। इन पर भी वित्त मंत्री की अध्यक्षता वाली समिति ने विचार किया है।
सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद अभी तक सरकारी बैंकों की वित्तीय स्थिति में बहुत सुधार के संकेत नहीं मिले हैं। बैंक विलय के लिए समिति बनाने के बाद कैबिनेट ने इन बैंकों के लिए 2.11 लाख करोड़ रुपये के पैकेज का भी एलान किया था। इसमें से 80 हजार करोड़ रुपये के प्रावधान को संसद ने भी मंजूरी दे दी है। सूत्रों के मुताबिक, सरकार को यह बात तकरीबन समझ आ रही है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में विलय किए बिना अब बात नहीं बनने वाली है। इस सोच के पीछे एक वजह यह है कि सरकार ने इन बैंकों को 1.80 लाख करोड़ रुपये बाजार से बांड्स जारी कर जुटाने को कहा है, लेकिन इनमें से अधिकांश बैंकों की स्थिति बेहद खराब है। उनके लिए निवेशकों को आकर्षित करना एक टेढ़ी खीर है। ऐसे में विलय की घोषणा से इनके प्रति निवेशकों का आकर्षण बढ़ेगा। ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि अगला वित्त वर्ष 2018-19 छोटे-छोटे सरकारी बैंकों को मिला कर कुछ बड़े बैंक बनाने के लिए जाना जाएगा।