पराली को जलाकर अब वायु में प्रदूषण पैदा नहीं होगा, बल्कि इससे ईटें, कपड़े धोने का साबुन और डिटरजेंट बनेगा। इस प्रकार का आविष्कार किया है इंस्टीट्यूट ऑफ नेनो साइंस एंड टेक्नोलॉजी मोहाली की वैज्ञानिक डॉ. मेनका झा और डॉ. दीपा घोष ने। दो साल की लंबी रिसर्च के बाद मेनिका ने पराली से ईटें, साबुन और डिटरजेंट बनाने में सफलता हासिल की है। इस खोज को करने का मुख्य उद्देश्य पंजाब और हरियाणा में जलाई जा रही पराली पर रोक लगाना है, ताकि वायु में फैलने वाली कार्बनडाईऑक्साइड भी खत्म हो सके और सर्दियों के मौसम में होने वाली धुंध और सांस की बीमारियों से बचा जा सके।
जलाकर बनाई जाएंगी ईटें, कार्बनडाइऑक्साइट से बनेगा साबुन और डिटरजेंट
डॉ. मेनका की तरफ से तैयार किए गए आविष्कार में पराली को जलाया जाएगा, लेकिन आम तरीके से नहीं। जहां पर पराली को आग लगाई जाएगी, उसके ऊपर एक सॉल्यूशन लगाया जाएगा। जिसमें पराली को जलाने से निकलने वाली गैस इकट्ठी होगी। जलने के बाद जो राख (सख्त रूप में) बचेगी, उसमें सीमेंट डालकर उसे मिक्स किया जाएगा और ईट के सांचे में ढाला जाएगा। वहीं, जो कार्बनडाईऑक्साइड सॉल्यूशन में जमा होगी, उससे एक विशेष प्रकार का तरल पदार्थ पैदा होगा, जिसमें कुछ सोड़ा डालकर कपड़े धोने का साबुन और डिटरजेंट बनाए जाएंगे। अंतिम टेस्ट के लिए तैयार, सालभर में मार्केट में उपलब्ध होंगी ईटें डॉ. मेनका ने बताया कि पराली को जलाकर बनाई गई ईटें और साबुन को फाइनल टेस्ट के लिए भेजा गया है। यदि यह पास हो जाता है, तो सालभर में पराली से बनी हुई ईटें मार्केट में उपलब्ध होंगी। इसके साथ ही इसे गांव के लोग या फिर ईट-भट्ठे पर बड़े स्तर पर प्रयोग किया जा सकेगा।
ईटों की कीमत मार्केट वेल्यू से सस्ती और टिकाऊ होगी
डॉ. मेनका ने बताया कि पराली की राख से यदि ईटें बनाई जाती हैं, तो वे आम ईटों से कहीं ज्यादा मजबूत होंगी, क्योंकि उसमें एक तो सीमेंट इस्तेमाल होगा और दूसरा पराली की राख डालने से वह जल्दी गलेगी नहीं। गांव में लोग मिट्टी के मकान बनाते है। मिट्टी की ईटों की जगह पर यदि इन ईटों का इस्तेमाल होगा, तो घर की बाहरी दीवारों की मरम्मत की जरूरत नहीं पडे़गी। मोहाली से दिल्ली जाते हुए आया पराली का इस्तेमाल करने का ख्याल डॉ. मेनका ने बताया कि वे झारखंड से हैं। जिस कारण घर आने-जाने के लिए हमेशा मोहाली से दिल्ली में सड़क के रास्ते का ही इस्तेमाल करती हैं। उस दौरान हरियाणा के रास्ते में पराली को जलते हुए देखती थी और कहीं न कहीं उसके बुरे प्रभावों से भी जूझती थी। वहीं से मैंने सोचा कि पराली से कोई ऐसी उपयोगी चीज बनाई जाए कि पर्यावरण प्रदूषण से बचाव हो सके।