चंडीगढ़ की विरासत: 38 साल बाद ली कार्बूजिए की कैंटीन में चाय पीएंगे लोग, दोबारा खुल गई
चंडीगढ़ को बसाने वाले फ्रेंच आर्किटेक्ट ली कार्बूजिए और पिअरे जेनरे 38 साल पहले जहां बैठकर चाय का आनंद लिया करते थे, वह जगह अब फिर से गुलजार हो गई है। अब शहरवासी भी यहां बैठकर चाय की चुस्कियों का लुत्फ उठा सकेंगे। सेक्टर-19 स्थित ली कार्बूजिए सेंटर में बुधवार को कैंटीन की शुरुआत हो गई। हालांकि बाद में यहां पर फारेस्ट डिपार्टमेंट ने बंदरों को भगाने के लिए लंगूर पाल रखे थे। यहां बाकायदा लंगूरों के कमरे पर जाली लगी हुई थी, जिन्हें बंदरों को भगाने के लिए ले जाया जाता था।
इस कैंटीन को रेनोवेट करते समय इसके ओरिजनल ढांचे में कोई ज्यादा बदलाव नहीं किया गया है। जहां कहीं बहुत अधिक जरूरत महसूस हुई वहीं ओरिजनल स्ट्रक्चर से छेड़छाड़ की गई है। कैंटीन का जो गोलाकार स्ट्रक्चर है, वह पहले जैसा ही लगता है। यह सीमेंट से बना हुआ है। कैंटीन की साफ सफाई के लिए जब कुछ तोड़फोड़ की गई तो पाया गया कि इसे तो ईंटों से ही तैयार किया गया है। यह ईंटें भी आज की ईंटों से एक सूत तक बड़ी हैं। कैंटीन के अंदर बना बैंच जो दीवार के बिल्कुल साथ सटा था।
इसका लुक ठीक करने के लिए कुछ तोड़ा गया है, क्योंकि रेनोवेशन के दौरान उसे बचाने का तरीका नजर नहीं आया। बाहर बने बैंच को उन्हीं ईंटों का प्रयोग करके कैंटीन के अन्य हिस्से को रिपेयर करने में कर लिया गया।
ऐसे हुआ था कैंटीन का निर्माण
यह कैंटीन 1950 में तैयार की गई थी। यह कैंटीन लगातार चलती रही लेकिन 1980 के बाद से यह कैंटीन बंद पड़ी थी। बुधवार को इस कैंटीन की शुरुआत यूटी प्रशासन के प्रिंसिपल होम सेक्रेटरी अरुण कुमार गुप्ता ने किया। इस मौके पर पर्यटन सचिव जितेंदर यादव ने बताया कि अब दोबारा कैंटीन का जीर्णोद्धार हो गया है। इसमें चाय, काफी और समोसे के साथ धीरे धीरे लाइट रिफ्रेशमेंट भी दी जाएगी। पर्यटन सचिव ने बताया कि पर्यावरण विभाग और कंज्यूमर कोर्ट का ऑफिस निकट ही है, लिहाजा वहां आने वाले लोगों को कैंटीन तक खींचकर लाने की योजना है। इससे पर्यटन के लिहाज से भी यह जगह हिट हो सकेगी। यहां लोग कैंटीन में खाने-पीने के लिए आएंगे और ली कार्बूजिए की इस विरासत को देखेंगे।
यहां रखे थे लंगूर जो भगाते थे बंदर
ली कार्बूजिए सेंटर की डायरेक्टर दीपिका गांधी ने बताया कि एक समय यह कैंटीन फारेस्ट विभाग के अंडर आ गई थी। यहां फारेस्ट विभाग ने कैंटीन के अंदरूनी हिस्से में लंगूर रखे हुए थे। इन लंगूरों को बंदर भगाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। इस कैंटीन में जहां लंगूर रखे गए थे वहां एक तरफ जाली लगी थी। जहां फिलहाल कैंटीन का खुला हिस्सा है वहां शीशा लगाने की योजना है, ताकि उसका मूल स्वरूप बना रहे और शीशे में यह हिस्सा खुला सा ही दिखाई दे।
गेट का डिजाइन घर से है मिलता
कैंटीन में ईंट से बने गोलाकार हिस्से तो तोड़ा नहीं गया है। इसमें इंजीनियरिंग विभाग ने पाया कि अगर इसमें नए सिरे से पुराने सरिये निकालकर डाले गए तो मूल स्ट्रक्चर टूटने का डर है। कैंटीन के दरवाजे का जो मुख्य डिजाइन है, वही डिजाइन पिअरे जेनरे के सेक्टर 5 स्थित घर में लगी लाइट का है। इस घर को अब गेस्ट हाउस में तबदील कर दिया गया है।