उत्तर भारत का मशहूर त्योहार लोहड़ी, ‘मकर संक्रान्ति’ से एक दिन पहले मनाया जाता है. लोहड़ी का त्यौहार नए साल की शुरुआत में फसल की कटाई और बुवाई के उपलक्ष में हर साल 13 जनवरी को मनाया जाता है. यह पर्व विशेष रूप से पंजाबियों द्वारा मनाया जाता है.
लोहड़ी की शाम सभी लोग एक-दूसरे के घर जाकर मूंगफली, गजक और रेवड़ी देते हुए त्यौहार की बधाई देते हैं. डिजिटल वर्ल्ड में सोशल मीडिया या मैसेज के जरिए बधाई देना चलन में है. पेश हैं कुछ मैसेज, जिनके ज़रिए लोहड़ी की बधाईयां दे सकते हैं.
1 फेर आ गई भांगड़े दी वारी
लोहरी मनान दी करो तैयारी
आग दे कोल सारे आओ
सुंदर मुंदरिए जोर नाल गाओ
लोहरी की शुभकामनाएं
2 एक सुबह नयी सी कुछ धुप
अब नहीं रहेंगे हम सब चुप
करेंगे पूजा पाठ
खायेंगे गुड, तिल लड्डू साथ
लोहरी की शुभकामनाएं
3 सूरज की राशी बदलेगी,
कुछ का नसीब बदलेगा,
यह साल का पहला पर्व होगा,
जब हम सब मिल कर खुशियां मनाएंगे
लोहरी की शुभकामनाएं
4 मीठे-मीठे गुड में मिल गया तिल
छतो पर उड़ीं पतंग और खिल गया सबका दिल
जीवन में हो हर दिन सुख और शांति
विश यू हैप्पी लोहड़ी
5 तिल की ख़ुशी और अपनों का प्यार
मुबारक हो आपको लोहरी का त्यौहार
लोहरी की शुभकामनाएं
6 चांद को चांदनी मुबारक
दोस्त को दोस्ती मुबारक
मुझको आप मुबारक
और मेरी तरफ़ से आपको लोहड़ी मुबारक
7 पॉपकॉर्न की खुशबु, मूंगफली रेबड़ी की बहार
लोहरी का त्यौहार और अपनों का प्यार
थोड़ी मस्ती, थोड़ा प्यार
पहले ही आपको मुबारक हो लोहड़ी का त्यौहार
8 मूंगफली दी खुशबू ते गुड़ दी मिठास
मक्की दी रोटी ते सरसों दा साग
दिल दी खुशी ते आपनों दा प्यार
मुबारक होवे तुहानूं लोहड़ी दा ये त्यौहार
9 लौट आया भंगड़ा डालना दा दिन
जब आग दे कोल सारे आके मनावंगे लोहड़ी
विशिंग यू एंड योर फॅमिली अ वैरी हैप्पी लोहरी
जानिए लोहड़ी का त्यौहार और दुल्ला भट्टी का संबंध-
लोहड़ी को दुल्ला भट्टी की कहानी से जोड़ा जाता हैं. लोहड़ी के गानों का केंद्र बिंदु दुल्ला भट्टी को बनाया जाता है. जानिए क्या है- ‘दुल्ला भट्टी’. दुल्ला भट्टी मुग़ल शासक अकबर के समय में पंजाब में रहता था. उसे पंजाब के नायक की उपाधि से सम्मानित किया गया था. उस समय संदल बार के जगह पर लड़कियों को गुलामी के लिए बल पूर्वक अमीर लोगों को बेचा जाता था. दुल्ला भट्टी ने एक योजना के तहत लड़कियों को मुक्त करवाकर उनकी शादी की हिन्दू लड़को से करवाई. दुल्ला भट्टी एक विद्रोही था उसके वंशज भट्टी राजपूत थे. उसके पूर्वज पिंडी भट्टियों के शासक थे जो की संदल बार में था अब संदल बार पकिस्तान में स्थित हैं.