पंजाब बना ‘प्रदूषण का चैंबर’

चंडीगढ़: पंजाब सरकार के सुस्त रवैए ने राज्य को प्रदूषण का चैंबर बना दिया है। प्रदूषण का स्तर इस कदर बिगड़ गया है कि सांस लेना सीधे बीमारियों को न्यौता देना है। अमृतसर से लुधियाना और चंडीगढ़ से दिल्ली तक यही हालात हैं। पंजाब में पिछले साल की तुलना में अभी तक फसल के अवशेषों में आग लगाने के मामले कम दर्ज हुए हैं लेकिन घटनाओं में अचानक इजाफे ने इस बार भी स्थितियों को बदतर कर दिया है।

पंजाब पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (पी.पी.सी.बी.) के अधिकारियों की मानें तो धान की कटाई से पहले सरकार ने अवशेष जलाने पर सख्ती तो दिखाई लेकिन एक्शन के नाम पर खास बंदोबस्त नहीं किया। न तो अतिरिक्त स्टाफ मुहैया करवाया और न ही अतिरिक्त संसाधन। राजनीतिक दलों ने भी समर्थन कर रही-सही कसर पूरी कर दी। यही वजह रही कि अक्तूबर के मध्य तक घटनाएं कम थीं लेकिन अक्तूबर माह के अंत से नवंबर के पहले हफ्ते में घटनाओं में अचानक इजाफा हुआ। इसके चलते हवा की नमी में प्रदूषण इस कदर रच-बस गया कि पूरा आसमान तक धुंधला दिखाई देने लगा है। बोर्ड के अधिकारियों की मानें तो 9 नवंबर, 2016 तक करीब 50 हजार मामले दर्ज किए गए थे लेकिन इस बार 9 नवम्बर तक आंकड़ा 37 हजार के करीब ही पहुंचा है। बेशक 30 फीसदी तक की गिरावट दर्ज हुई लेकिन राजनीतिक दलों की शह के चलते अचानक इन घटनाओं में तेजी ने पूरा मामला बिगाड़ कर रख दिया है।

बोर्ड के अधिकारियों की मानें तो सरकार सख्त तेवर बरकरार रखती तो आगजनी की घटनाओं में 50 फीसदी से ज्यादा तक कमी हो सकती थी। ऐसा इसलिए है कि बोर्ड ने गेहूं की कटाई के बाद आगजनी की घटनाओं पर कड़ा संज्ञान लेते हुए जुर्माने लगाए थे। किसान भी जुर्माने को लेकर सकते में थे लेकिन सरकारी स्तर पर वसूली में खास दिलचस्पी नहीं दिखाई गई। गेहंू के सीजन में आगजनी की करीब 10,905 घटनाएं रिकॉर्ड की गई थीं और 61.47 लाख रुपए का वातावरण मुआवजा लगाया गया था। सितंबर 2017 तक महज 18.75 लाख रुपए की ही रिकवरी संभव हो पाई। जुर्माने की वसूली में सुस्ती ने किसानों को बल दिया। उन्होंने इस बार आग लगाने से गुरेज नहीं किया। बोर्ड अधिकारियों के अनुसार यदि सरकार दोषी किसानों की बिजली सबसिडी बंद करने का ऐलान कर दे तो काफी हद तक समस्या का निपटारा हो जाए।

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