स्कूलों में महफूज नहीं है बचपन
क्या स्कूल बच्चों के लिए कब्रगाह बन रहे हैं। महज एक महीने में राजधानी एनसीआर के स्कूलों में एक के बाद एक बच्चों की हुई हत्या के बाद अब अभिभावक अपने बच्चो को स्कूल भेजने से कतराने लगे हैं। शुक्रवार को साइबर सिटी गुरुग्राम के रायन इंटरनेशनल में दूसरी कक्षा के छात्र की गला काटकर हत्या कर दी गई।
सात साल के प्रद्युम्न का शव स्कूल पहुंचने के महज 15 मिनट बाद ही स्कूल के टॉयलेट में मिला। जबकि पिछले महीने अगस्त में गाजियाबाद के इंदिरापुरम स्थित जीडी गोयनका स्कूल में अरमान सहगल की मौत से पूरा एनसीआर स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा को लेकर सहम गया था।
2016 में भी वसंत कुंज स्थित रायन स्कूल इंटरनेशल के एक छात्र देवांश की मौत ने भी स्कूल में बच्चों की सुरक्षा पर सवालिया निशान लगाया था। देवांश के साथ स्कूल में कुकर्म (अप्राकृतिक कृत्य) की भी आशंका जताई गई थी देवांश के ऐनल प्वाइंट पर रूई लगी थी जबकि देवांश का शव पानी टंकी के पास मिला था। बड़ा सवाल ये था कि देवांश पानी टंकी के पास कैसे पहुंचा और उसके शव को टंकी से कैसे निकाला गया।
बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ शिक्षा की मूलभूत सुविधाओं और सुरक्षा की भी जरूरत होती है। लेकिन अगर पिछले कुछ दिनों में बच्चों के साथ घट रही घटनाओं पर नजर डालें तो ज्यादातर स्कूल और सरकारों ने इसपर कुछ खास ध्यान नहीं दिया है। पिछले कुछ महीनों या सालों में बच्चों की सुरक्षा के इंतजामों की कमी के चलते कई नौनिहालों को जान से हाथ तक धोना पड़ा है। बच्चों के साथ बढ़ रहे मामलों पर राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग ने स्कूलों से जरूरी सुरक्षा इंतजाम करने की गाइड लाइन तक जारी किया है। लेकिन फिरभी देश के ज्यादातर स्कूलों में सुरक्षा का इंतजाम संतोषजनक नहीं है।