हाईकोर्ट ने कहा कि उन्हें ऐसा कोई कारण नजर

हाईकोर्ट ने कहा कि उन्हें ऐसा कोई कारण नजर

हाईकोर्ट ने कहा कि उन्हें ऐसा कोई कारण नजर

पलसोरा के झोपड़पट्टी वासी जिनके घर वर्ष 2003 में ढहा दिए गए थे, उन्हें हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिल गई है। वैकल्पिक व्यवस्था की मांग को लेकर विस्थापितों की ओर से दाखिल याचिका का निपटारा करते हुए पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट नेे चंडीगढ़ प्रशासन को विचार करने के आदेश दिए हैं। हाईकोर्ट ने आदेश में कहा है कि विस्थापितों के आवेदन पर 2006 की चंडीगढ़ स्माल फ्लैट्स स्कीम के तहत फ्लैट्स देने पर गौर किया जाए।
हाईकोर्ट ने कहा कि उन्हें ऐसा कोई कारण नजर नहीं आता है कि इनके आवेदनों को स्माल फ्लैट्स स्कीम के तहत गौर न किया जा सके। हाईकोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए इन याचिकाकर्ताओं को स्माल फ्लैट्स स्कीम-2006 के तहत एक कमरे के मकान के लिए आवेदन देने को कहा है। साथ ही यह भी कहा है कि जैसे ही इनके आवेदन आ जाएं, उन आवेदकों पर संबंधित अथॉरिटी, अपीलेंट और रिवीजनल अथॉरिटी चार महीनों मैं गौर कर उनका निपटारा करे।

यह सभी याचिकाकर्ता पलसोरा की झुग्गियों में रह रहे थे। चंडीगढ़ प्रशासन ने झोपड़पट्टियों में रह रहे और आर्थिक पिछड़े वर्ग के पुनर्वास के लिए वर्ष 1979 में लाइसेंसिंग ऑफ टेनमेंट्स एंड साइट्स एंड सर्विसेज इन चंडीगढ़ स्कीम बनाई थी। इस स्कीम के तहत 1 जनवरी 1978 से लेबर कालोनी में रह रहे लोगों को घर दिए जाने पर गौर किया जाना था।

इस स्कीम की योग्यता की शर्तों में नवंबर 2000 में संशोधन कर यह तय कर दिया गया कि वर्ष 1990 से लेकर चंडीगढ़ नगर निगम के दिसंबर 1996 के चुनाव के दिन तक पलसोरा की कालोनी में रह रहे लोगों को अगर उनकी कालोनी ढहाई गई तो उन्हें भी इस स्कीम में वैकल्पिक व्यवस्था कर घर दे दिए जाएंगे। याचिकाकर्ता इसी कालोनी के निवासी हैं और उनकी कालोनी जून 2003 में ढहा दी गई थी।

इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने संबंधित अथॉरिटी से वैकल्पिक व्यवस्था किए जाने की मांग की, लेकिन उनकी मांग यह कह कर खारिज कर दी गई कि उनके नाम दिसंबर 1996 की मतदाता सूची में नहीं हैं। इसके खिलाफ हाईकोर्ट में दायर याचिका पर हाईकोर्ट ने कहा कि स्कीम में छेड़छाड़ करने से कोई लाभ नहीं होगा। वर्ष 2006 की स्कीम की शर्तों में हाईकोर्ट ने ही कुछ नरमी के आदेश बीते वर्ष एक याचिका का निपटारा करते हुए दिए थे। लिहाजा, याचिकाकर्ता वर्ष 2006 की स्कीम के तहत आवेदन करें और इनके आवेदन पर चार महीनों में गौर करने के हाईकोर्ट ने संबंधित अथॉरिटी को आदेश दे दिए हैं

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